Saturday, June 12, 2010

सहसा


सहसा


आज तुम्हारी आयी याद,

मन में गूँजा अनहद नाद!

बरसों बाद

बरसों बाद!

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साथ तुम्हारा केवल सच था,

हाथ तुम्हारा सहज कवच था,

सब कुछ पीछे छूट गया,पर जीवित पल-पल का उन्माद!

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बीत गये युग होते-होते,

रातों-रातों सपने बोते,

लेकिन उन मधु चल-चित्रों से जीवन रहा सदा आबाद!

2 comments:

  1. सुन्दर गीत और कंठ भी मधुर.. आनंद आया सुनकर.

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  2. सुन्दर प्रयास - मधुर काठ से गीत सुमधुर बन पाया है

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