रात बीती .....
याद रह-रह आ रही है,
रात बीती जा रही है !
.
ज़िन्दगी के आज इस सुनसान में
जागता हूँ मैं तुम्हारे ध्यान में
सृष्टि सारी सो गयी है,
भूमि लोरी गा रही है !
.
झूमते हैं चित्र नयनों में कयी
गत तुम्हारी बात हर लगती नयी
आज तो गुज़रे दिनों की
बेरुख़ी भी भा रही है !
.
बह रहे हैं हम समय की धार में,
प्राण ! रखना, पर भरोसा प्यार में,
कल खिलेगी उर-लता जो
किस क़दर मुरझा रही है !
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याद रह-रह आ रही है,
रात बीती जा रही है !
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ज़िन्दगी के आज इस सुनसान में
जागता हूँ मैं तुम्हारे ध्यान में
सृष्टि सारी सो गयी है,
भूमि लोरी गा रही है !
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झूमते हैं चित्र नयनों में कयी
गत तुम्हारी बात हर लगती नयी
आज तो गुज़रे दिनों की
बेरुख़ी भी भा रही है !
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बह रहे हैं हम समय की धार में,
प्राण ! रखना, पर भरोसा प्यार में,
कल खिलेगी उर-लता जो
किस क़दर मुरझा रही है !
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