Saturday, June 12, 2010

रात बीती .....

रात बीती .....


याद रह-रह रही है,

रात बीती जा रही है !

.

ज़िन्दगी के आज इस सुनसान में

जागता हूँ मैं तुम्हारे ध्यान में

सृष्टि सारी सो गयी है,

भूमि लोरी गा रही है !

.

झूमते हैं चित्र नयनों में कयी

गत तुम्हारी बात हर लगती नयी

आज तो गुज़रे दिनों की

बेरुख़ी भी भा रही है !

.

बह रहे हैं हम समय की धार में,

प्राण ! रखना, पर भरोसा प्यार में,

कल खिलेगी उर-लता जो

किस क़दर मुरझा रही है !
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