Saturday, June 12, 2010

मुसकुराए तुम

मुसकुराए तुम



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मुसकुराए तुम, हृदय-अरविन्द मेरा खिल गया !

देख तुमको हर्ष गदगद, प्राप्य मेरा मिल गया !

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चाँद मेरे ! क्यों उठाया

इस तरह जीवन-जलधि में ज्वार रे ?

पा गया तुममें सहारा

कामिनी ! युग-युग भटकता प्यार रे !

आज आँखों में गया बस, प्रीत का सपना नया !

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रे सलोने मेघ सावन के

मुझे क्यों इस तरह नहला दिया ?

क्यों तड़प नीलांजने !

निज बाहुओं में नेह से भर-भर लिया ?

साथ छूटे यह कभी ना, हे नियति ! करना दया !

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