
यह ब्लॉग कवि डाक्टर महेंद्रभटनागर के काव्य के संगीतबद्ध संकलन का है, सुर और काव्य का यह मेल है काव्य-धारा। कम्पोज़र और सिंगर हैं — कुमार आदित्य विक्रम।
Sunday, June 13, 2010
Saturday, June 12, 2010
सहसा
सहसा
आज तुम्हारी आयी याद,
मन में गूँजा अनहद नाद!
बरसों बाद
बरसों बाद!
.
साथ तुम्हारा केवल सच था,
हाथ तुम्हारा सहज कवच था,
सब कुछ पीछे छूट गया,पर जीवित पल-पल का उन्माद!
.
बीत गये युग होते-होते,
रातों-रातों सपने बोते,
लेकिन उन मधु चल-चित्रों से जीवन रहा सदा आबाद!
आज तुम्हारी आयी याद,
मन में गूँजा अनहद नाद!
बरसों बाद
बरसों बाद!
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साथ तुम्हारा केवल सच था,
हाथ तुम्हारा सहज कवच था,
सब कुछ पीछे छूट गया,पर जीवित पल-पल का उन्माद!
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बीत गये युग होते-होते,
रातों-रातों सपने बोते,
लेकिन उन मधु चल-चित्रों से जीवन रहा सदा आबाद!
मुसकुराए तुम
मुसकुराए तुम
.
मुसकुराए तुम, हृदय-अरविन्द मेरा खिल गया !
देख तुमको हर्ष गदगद, प्राप्य मेरा मिल गया !
.
चाँद मेरे ! क्यों उठाया
इस तरह जीवन-जलधि में ज्वार रे ?
पा गया तुममें सहारा
कामिनी ! युग-युग भटकता प्यार रे !
आज आँखों में गया बस, प्रीत का सपना नया !
.
रे सलोने मेघ सावन के
मुझे क्यों इस तरह नहला दिया ?
क्यों तड़प नीलांजने !
निज बाहुओं में नेह से भर-भर लिया ?
साथ छूटे यह कभी ना, हे नियति ! करना दया !
==========================
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मुसकुराए तुम, हृदय-अरविन्द मेरा खिल गया !
देख तुमको हर्ष गदगद, प्राप्य मेरा मिल गया !
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चाँद मेरे ! क्यों उठाया
इस तरह जीवन-जलधि में ज्वार रे ?
पा गया तुममें सहारा
कामिनी ! युग-युग भटकता प्यार रे !
आज आँखों में गया बस, प्रीत का सपना नया !
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रे सलोने मेघ सावन के
मुझे क्यों इस तरह नहला दिया ?
क्यों तड़प नीलांजने !
निज बाहुओं में नेह से भर-भर लिया ?
साथ छूटे यह कभी ना, हे नियति ! करना दया !
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रात बीती .....
रात बीती .....
याद रह-रह आ रही है,
रात बीती जा रही है !
.
ज़िन्दगी के आज इस सुनसान में
जागता हूँ मैं तुम्हारे ध्यान में
सृष्टि सारी सो गयी है,
भूमि लोरी गा रही है !
.
झूमते हैं चित्र नयनों में कयी
गत तुम्हारी बात हर लगती नयी
आज तो गुज़रे दिनों की
बेरुख़ी भी भा रही है !
.
बह रहे हैं हम समय की धार में,
प्राण ! रखना, पर भरोसा प्यार में,
कल खिलेगी उर-लता जो
किस क़दर मुरझा रही है !
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याद रह-रह आ रही है,
रात बीती जा रही है !
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ज़िन्दगी के आज इस सुनसान में
जागता हूँ मैं तुम्हारे ध्यान में
सृष्टि सारी सो गयी है,
भूमि लोरी गा रही है !
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झूमते हैं चित्र नयनों में कयी
गत तुम्हारी बात हर लगती नयी
आज तो गुज़रे दिनों की
बेरुख़ी भी भा रही है !
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बह रहे हैं हम समय की धार में,
प्राण ! रखना, पर भरोसा प्यार में,
कल खिलेगी उर-लता जो
किस क़दर मुरझा रही है !
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चाँद सोता है !
चाँद सोता है !
सितारों से सजी चादर बिछाये चाँद सोता है !
.
बड़ा निश्चिन्त है तन से
बड़ा निश्चिन्त है मन से
बड़ा निश्चिन्त जीवन से
किसी के प्यार का आँचल दबाये चाँद सोता है !
.
नयी सब भावनाएँ हैं
नयी सब कल्पनाएँ हैं
नयी सब वासनाएँ हैं
हृदय में स्वप्न की दुनिया बसाये चाँद सोता है !
.
सुखद हर साँस है जिसकी
मधुर हर आस है जिसकी
सनातन प्यास है जिसकी
विभा को वक्ष पर अपने लिटाये चाँद सोता है !
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सितारों से सजी चादर बिछाये चाँद सोता है !
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बड़ा निश्चिन्त है तन से
बड़ा निश्चिन्त है मन से
बड़ा निश्चिन्त जीवन से
किसी के प्यार का आँचल दबाये चाँद सोता है !
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नयी सब भावनाएँ हैं
नयी सब कल्पनाएँ हैं
नयी सब वासनाएँ हैं
हृदय में स्वप्न की दुनिया बसाये चाँद सोता है !
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सुखद हर साँस है जिसकी
मधुर हर आस है जिसकी
सनातन प्यास है जिसकी
विभा को वक्ष पर अपने लिटाये चाँद सोता है !
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गीत में तुमने सजाया ...
गीत में तुमने सजाया ...
गीत में तुमने सजाया रूप मेरा
मैं तुम्हें अनुराग से उर में सजाऊँ !
.
रंग कोमल भावनाओं का भरा
है लहरती देख कर धानी धरा
नेह दो इतना नहीं, सभँलो ज़रा
गीत में तुमने बसाया है मुझे जब
मैं सदा को ध्यान में तुमको बसाऊँ !
.
बेसहारे प्राण को निज बाँह दी
तप्त तन को वारिदों-सी छाँह दी
और जीने की नयी भर चाह दी
गीत में तुमने जतायी प्रीत अपनी
मैं तुम्हें अपना हृदय गा-गा बताऊँ !
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