Thursday, April 12, 2012

Aaj Chhipaa Hai Chaand

अमावस की अँधेरी में

[महेंद्रभटनागर]


नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?


मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
नीरव जलने वाले तारो !
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
अविरल बहने वाली धारो !

सागर की किस गहराई में आज छिपा है चाँद ?
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?


मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
मन्थर मुक्त हवा के झोंको !
जिसने चाँद चुराया मेरा
उसको सत्वर भगकर रोको !

नयनों से दूर बहुत जाकर आज छिपा है चाँद ?
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?


मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
तरुओ ! पहरेदार हज़ारों,
चुपचाप खड़े हो क्यों ? अपने
पूरे स्वर से नाम पुकारो !
दूर कहीं मेरी दुनिया से आज छिपा है चाँद !
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?






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