काव्य-धारा
यह ब्लॉग कवि डाक्टर महेंद्रभटनागर के काव्य के संगीतबद्ध संकलन का है, सुर और काव्य का यह मेल है काव्य-धारा। कम्पोज़र और सिंगर हैं — कुमार आदित्य विक्रम।
Thursday, April 12, 2012
Aaj Chhipaa Hai Chaand
अमावस की अँधेरी में
॰
[महेंद्रभटनागर]
॰
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
॰
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
नीरव जलने वाले तारो !
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
अविरल बहने वाली धारो !
सागर की किस गहराई में आज छिपा है चाँद ?
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
॰
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
मन्थर मुक्त हवा के झोंको !
जिसने चाँद चुराया मेरा
उसको सत्वर भगकर रोको !
नयनों से दूर बहुत जाकर आज छिपा है चाँद ?
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
॰
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
तरुओ ! पहरेदार हज़ारों,
चुपचाप खड़े हो क्यों ? अपने
पूरे स्वर से नाम पुकारो !
दूर कहीं मेरी दुनिया से आज छिपा है चाँद !
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
॰
॰
[महेंद्रभटनागर]
॰
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
॰
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
नीरव जलने वाले तारो !
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
अविरल बहने वाली धारो !
सागर की किस गहराई में आज छिपा है चाँद ?
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
॰
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
मन्थर मुक्त हवा के झोंको !
जिसने चाँद चुराया मेरा
उसको सत्वर भगकर रोको !
नयनों से दूर बहुत जाकर आज छिपा है चाँद ?
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
॰
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ
तरुओ ! पहरेदार हज़ारों,
चुपचाप खड़े हो क्यों ? अपने
पूरे स्वर से नाम पुकारो !
दूर कहीं मेरी दुनिया से आज छिपा है चाँद !
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
॰
Wednesday, April 11, 2012
एक रात
[महेंद्रभटनागर]
अँधियारे जीवन - नभ में
बिजुरी-सी चमक गयीं तुम !
सावन झूला झूला जब
बाँहों में रमक गयीं तुम !
कजली बाहर गूँजी जब
श्रुति-स्वर-सी गमक गयीं तुम !
महकी गंध त्रियामा जब
पायल-सी झमक गयीं तुम !
तुलसी-चौरे पर आ कर
अलबेली छमक गयीं तुम !
सूने घर - आँगन में आ
दीपक-सी दमक गयीं तुम !
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[महेंद्रभटनागर]
अँधियारे जीवन - नभ में
बिजुरी-सी चमक गयीं तुम !
सावन झूला झूला जब
बाँहों में रमक गयीं तुम !
कजली बाहर गूँजी जब
श्रुति-स्वर-सी गमक गयीं तुम !
महकी गंध त्रियामा जब
पायल-सी झमक गयीं तुम !
तुलसी-चौरे पर आ कर
अलबेली छमक गयीं तुम !
सूने घर - आँगन में आ
दीपक-सी दमक गयीं तुम !
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Sunday, June 13, 2010
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